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नहीं होता । चक्षु से जब घट के रूप का लौकिक प्रत्यक्ष होता है तब रूपात्मक घट का चक्षु से प्रत्यक्ष होता है। स्पर्शात्मक होने पर भो चक्षु से स्पर्शात्मक घट का प्रत्यक्ष नहीं होता । स्पर्श चक्षु का विषय नहीं है, इसलिये स्पर्शात्मक रूप से चक्षु घट को नहीं जान सकती । स्पर्श के साथ प्रत्यक्ष न होने पर भी घट चक्षु का विषय है । स्पर्श के समान जिन अनेक धर्मो का चक्षु द्वारा प्रत्यक्ष नहीं हो सकता, उन धर्मों से अभिन्न रूप में चक्षु द्वारा प्रत्यक्ष नहीं करती । घट अनंत धर्मात्मक है और चक्षु का विषय है, इसलिये अनन्त धर्मात्मक घट चक्षु का विषय कहा जाता है । घट के विषय होने मात्र से उसके अनन्त धर्म चक्षु के विषय नहीं हो जाते । अनन्त धर्मों का प्रकाशक न होने पर भी चक्षु घट ज्ञान में प्रमाण है । घट हैइत्यादि लौकिक वाक्य भी घट के अनन्त धर्मों को प्रकाशित नहीं करता, वह केवल सत्त्व धर्म को प्रकाशित करता है । इतने से घट के विषय में चक्षु के समान वाक्य का भी लौकिक प्रामाण्य है । अर्थ अनन्त धर्मात्मक है, इसलिये देखने पर घट की जब प्राप्ति होती है तब अनन्त धर्मों के साथ होती है 1 चक्षु से होनेवाला ज्ञान अनन्त धर्मों के साथ घट की प्राप्ति में हेतु नहीं है। लौकिक वाक्य भी जब किसी अर्थ की प्रतीति को उत्पन्न करके प्राप्ति कराता है तब अनन्त धर्मात्मक वस्तु की प्राप्ति का कारण वस्तु का सहज स्वरूप है । वाक्य उसके अनन्त धर्मों को प्रकाशित नहीं करता । जिस प्रकार घट है इतना वाक्य अनन्त धर्मों को नहीं प्रकाशित करताइसी प्रकार उन सात प्रकारों को भी नहीं प्रकट करता जो सात भङ्गों से प्रकट होते हैं। अंक रूप को प्रकट करनेवाली चक्षु में जिस प्रकार लौकिक प्रामाण्य है, इस प्रकार घट है