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रजत समझकर लेने के लिए जो प्रवृत्ति करता है उसको रजत नहीं मिलता किन्तु शुक्ति मिलती है । वह शुक्ति के द्वारा रजत के आभूषणों की रचना नहीं करा सकता । इसी प्रकार जो जल समझकर मरुस्थल में प्रवृत्ति करता है उसको पानी नहीं मिलता और न उसकी प्यास पानी पीने से दूर होती है । अर्थ की प्राप्ति न होने से इस प्रकार के ज्ञान अप्रमाण हैं घट है' इत्यादि वाक्य को सुनकर जब कोई प्रवृत्ति करता है तो उसको घट मिल जाता है । घट की प्राप्ति का कारण होनेसे लौकिक वाक्य के द्वारा उत्पन्न होनेवाला ज्ञान प्रमाण कहा जाता है। यदि मरुस्थल में जल ज्ञान के समान लौकिक वाक्य से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान अप्रमाण होता तो प्रवत्ति करने पर घट की प्राप्ति न होती। घट का प्रकाशक प्रत्यक्ष ज्ञान घट की प्राप्ति का कारण होने से जिस प्रकार प्रमाण है इस प्रकार अर्थ को प्राप्त करानेवाला लौकिक वाक्य भी प्रमाण है।
लौकिक प्रत्यक्ष और लौकिक वाक्य की प्रमाणता समान है । घट आदि लौकिक अर्थ अनन्तधर्मों से युक्त हैं। प्रत्येक अर्थ के कुछ अपने पर्याय हैं और कुछ पर पर्याय हैं। रूप, स्पर्श आदि घट के स्व पर्याय हैं और पट-वृक्ष आदिसे भेद पर पर्याय हैं। घट से जितने भिन्न अर्थ हैं उन सबसे भेद घर में विद्यमान है । घट से भिन्न अर्थ अनन्त हैं इसलिए उन सबसे भेद भी अनन्त हैं। इन सभी स्व-पर पर्यायों के साथ घट का भेदाभेद है। इसलिये घट अनन्त धर्मात्मक है। ..
अन्य युक्तियों से भी अर्थों के अनन्त धर्म सिद्ध होते हैं। जब कोई घट आदि द्रव्य उत्पन्न होता है तभी त्रिभुवन के अन्दर जितने द्रव्य हैं उन सबके साथ साक्षात् अथवा परम्परा