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से भिन्न नित्य है। 'पराः ' का अर्थ यदिपरके लिये है इतना हो तो चक्षु आरिसे भिन्न पर अर्थात् संघातरूप पर यह भी हो सकता है । इसलिये जो उपभोक्ता सिद्ध होगा वह शव्या वारिक समान संघातरूप हो सिद्ध होगा । बौद्ध लोग उप. मोक्ता को ज्ञान-छा और संस्कार आदि का संघातरूप मानते हैं। इस,शा में शय्या आदिका उपभोक्ता संघातरूप सिव होगा। साहयको जो अर्थ इष्ट है, उससे विरूद्ध की सिद्धि के हो जाने से सांस्य का साधन व्यर्थ होगा। इस. लिये इस प्रयोग में पर शब्द का अथ 'असंहत मारमा' इस प्रकार करना चाहिये। तब इस अनुमान के प्रयोग में साध्य का स्वरूप सारुप के अनुकूल होगा। वादी विबर्थको सिमरने को करता है वही साध्य होना चाहिये। वरिप्रतिवादी विपके सिर करने की इच्छा करता है महबोजाबो तो प्रतिवादी बौड पक्ष आदिको संघात.
पर किये जानतालिये वह भी साध्य हो भावनासिब होने पर सांप द्वारा अमिमत मारमा कोसिदिनहीं होगी।
बमारियों के अनुगामी इस अनुमान में अनन्वय मावि होवों को कहते हैं। अन्बय का अर्थ है व्याप्ति । भ्याप्तिानो अभार है वह अनन्वय है । संघातरूप हेतु को व्याप्ति केल परार्थता के साथ नहीं, किन्तु परायत्त मोर संहतत्व के साथ है । चक्षु आदि इन्द्रिय सघात होने कारण शम्या आसन आदिक समान संहतरूप परके लिये है। जो असंहत पर है उसके साथ व्याप्ति नहीं है। इसलिये इस प्रयोग में अनन्बय दोष है। इस दोष के कारण हो य्या अवि दृष्टांतों में साध्य वैकल्यरूप दोष है । दृष्टान्त में जिस