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अर्थः-शंका करता है-यदि इस प्रकार है तो अन्य के प्रति आप आपत्ति देते हैं । जो सर्वथा एक है वह अनेक स्थानों के साथ संबंध नहीं कर सकता सामान्य इस प्रकार का है-इस आपत्ति को आप किस प्रकार करते हैं ?
विवेचना:-अन्यमत के अनुसार हेतु का प्रयोग यदि न हो सकता हो, तो जनों को भी प्रतिवादी जिन धर्मों को मानते हैं उनका आश्रय लेकर अन्य धर्म की आपत्ति नहीं करनी चाहिये । परन्तु जैन कहते हैं-न्याय मत के अनुसार सामान्य नित्य एक और अनेक व्यक्तियों के साथ संबंध रखता है । गोत्व जाति भिन्न देशों में रहने वाली गो व्यक्तियों में रहती है। जिस प्रकार समीप की गायों में है इस प्रकार दूर की गायों में भी है। जैन मत के अनुसार गोत्वे गो व्यक्तियों से सर्वथा भिन्न नहीं है । वह समान परिणामरूप है। एक गाय में जो परिणाम दिखाई देता है वह अन्य देश और अन्य काल को गायों म दिखाई देता है। यह समान परिणाम गो व्यक्तियों से सर्वथा भिन्न अथवा सर्वथा अभिन्न नहीं है, किन्तु भिन्न अभिन्न है और एक होने पर भी अनेक है। न्याय मत का निषेध करने के लिये जन कहता है जो वस्तु सर्वथा एक है उसका एक काल में भिन्न भिन्न देशों की व्यक्तियों के साथ संबंध नहीं हो सकता। घट एक है एक काल में उसका संयोग जिस देश के साथ है उसी काल में अनेक देशों के साथ नहीं हैं आप घट के समान गोत्व सामान्य को सर्वथा एक मानते हो । जब यह गोत्व एक गौ में रहे तब अन्य गायों के साथ उसका