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मूलम्-यस्यान्यथानुपपत्तिः सन्दिह्यते सोडनैकान्तिकः । सद्ध धा निर्णीतविपक्षत्तिकः सन्दिग्धविपक्षवृत्तिकश्च । ___ अर्थः-जिसकी अन्यथानुपपत्ति में सन्देह हो वह अनैकान्तिक है । वह दो प्रकारका है, निर्णीत विपक्षवृत्तिक और सन्दिग्धविपक्षवृत्तिक । विपक्ष में जिसकी वृत्ति निश्चित हो वह निर्णीत विपक्ष वृत्तिक है, जिसकी विपक्ष में वृत्ति सन्दिग्ध हो वह सन्दिग्ध विपक्षवृत्तिक
विवेचना.-जिसके साथ साध्य की व्याप्ति सन्दिग्ध हो वह हेतु अनैकान्तिक है । साध्य के अभाव में हेतु का अभाव व्याप्ति है, इसीको अन्यथानुपपत्ति कहा गया है। जहां साध्य का अभाव हो, वहां हेतु न हो, तो हेतु की अन्यथानुपपत्ति का निश्चय होता है। जहाँ साध्य का अभाव है वहां यदि हेतु के अभाव में सन्देह हो, हेतु हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है-इस प्रकार का सन्देह हो, तो वहां साध्य के बिना अनुपपत्ति का निर्णय नहीं हो सकता। यदि हेतु में साध्य के बिना अनुपपत्ति का निर्णय हो जाय तो जहाँ साध्याभाव है वहाँ हेतु के रहने न रहने का सन्देह नहीं हो सकता। साध्याभाव के अधिकरण में वत्ति का न होना अन्यथानुपपत्ति का निश्चय है । यह साध्याभाव के अधिकरण में हेतु की वृत्ति के सन्देह का प्रतिबंधक है। इसलिये साध्याभाव के अधिकरण में यदि हेतु की वृत्ति का सन्देह है, तो वहाँ साध्य के बिना अनुपपत्ति का निर्णय