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नहीं है अर्थात् सर्वज है वह वक्ता भी नहीं होना चाहिये । जो लोग किसीको सर्वज्ञ मानते हैं वे उसको वक्ता भी मानते हैं । वचन, सिद्ध करता है वक्ता पुरुष सर्वज्ञ नहीं है। इस प्रकार यहां सर्वज्ञता का निषेध करने के लिये वादोने वचन को हेतु माना है और सर्वज्ञरूप विपक्ष में वचन हेतु की निवृत्ति मानी है, पर यह निवृत्ति युक्त नहीं। किसी प्रमाण से सर्वज्ञ में वचन का अभाव निश्चित नहीं है। सर्वज्ञ भी वक्ता हो सकता है । सर्वज्ञरूप विपक्ष से वक्तत्व की निवृत्ति सन्देह युक्त है । अन्यथानुपपत्ति के सन्देह युक्त होनेके कारण वक्तृत्व हेतु अनैकान्तिक है । सर्वज्ञ को किसीने बोलते हुए नहीं देखा, इस कारण सर्वज्ञ में वचन का अभाव नहीं निश्चित हो सकता। किसी अल्पज्ञ को भी यदि चिरकाल तक बोलते हुए नहीं देखा तो इतनेसे वह बोलने में असमर्थ नहीं सिद्ध हो जाता । सर्वज्ञ जब बोल रहे हों. तब उनके देखनेवाले भी हो सकते हैं । आज सर्वज्ञ बोलते हुए नहीं दिखाई देते, इसका कारण सर्वज्ञ का वचन से रहित होना नहीं है। आज सर्वज्ञ नहीं हैं इसलिये वे बोलते हुए नहीं दिखाई देते। यदि कुछ लोगोंने पाँच मन भार को उठाने. वाले पुरुषों को न देखा हो और इस कारण वे जो पांच मन भार को उठाता है वह बोलता नहीं. इस प्रकार की व्याप्ति कोमानकर कहने लगें. कोई भी पुरूष पांच मन भार को नहीं उठाता, कारण, वह बोलता है तो उनका यह कथन युक्त नहीं है। उनके न देखने पर भी किसी काल में किसी स्थान पर पांच मन भार का उठानेवाला मनुष्य हो सकता है और बोल सकता है। इसी प्रकार आज न दिखाई देने पर भी किसी काल में, अतीत में वा अनागत में सर्वज्ञ हो