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को प्रकट करते हैं। शुक्ल वर्णवाला पुत्र विपक्ष है वह भी मित्रा का पुत्र हो सकता है । विपक्ष में रहने का सन्देह होनेके कारण यह अनेकान्तिक है।
मूलम्:-अकिञ्चित्कराख्यश्चतुर्थेऽपि हेत्वा. भासभेदो धर्मभूषणेनोदाहृतो न अडेदायः । सिद्धसाधनोबाधितविषयश्चेति द्विविधस्याप्य. प्रयोजकाह्वयस्य तस्य प्रतीत-निराकृताख्यप. क्षाभासभेदानतिरिक्तत्वात् ।
अर्थः-धर्मभूषण ने अकिंचित्कर नाम का चौथा हेत्वाभास का भेद कहा है, वह मानने योग्य नहीं है । सिद्ध साधन और वाधित विषय इस प्रकार अकिंचित्कर के दो भेद हैं । दोनों प्रकार का अकिंचित्कर अप्रयोजक कहा जाता है और यह पक्षाभास के प्रतीत और निराकृत नामक भेदों से भिन्न नहीं है ।
विवेचनाः-असिद्ध साध्य को सिद्ध करने के लिये हेतु का प्रयोग होता है । यदि अन्य प्रमाण से साध्य की सिद्धि हो जाय तो हेतु कुछ भी नहीं करता, इसलिए अकिचित्कर कहा जाता है। वह निष्प्रयोजन होता है। कान से शब्द का प्रत्यक्ष होता है इस वस्तु को सिद्ध करने के लिए यदि कोई 'शब्द कान से प्रत्यक्ष होता है , शब्दत्व होने से'-इस प्रकार अनुमान का प्रयोग करे तो शब्दत्व हेतु अकिचित्कर है। इस हेतु के प्रयोग से पहले कान के द्वारा उत्पन्न प्रत्यक्ष शब्द को कर्ण इन्द्रिय का विषय सिद्ध कर देता है । श्रावणत्व से