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निश्चय नहीं होता वहां हेतु अनैकान्तिक होता है। जहां पर अन्यथानुपपत्ति का अज्ञान हो वहां पर हेतु असिद्ध हो जाता है। हेतु के स्वरूप को यदि प्रतीति न हो, तो अन्य थानुपपत्ति को अप्रतीति होती है । प्रकृत अनुमान में शब्दत्व हेतु है। उसको अन्यथानुपपत्ति श्रावणत्व रूप साध्य के अभाव के साथ नहीं है। जहां शम्दत्व है वहां श्रावणत्व है इसलिये श्रावणत्व के साथ अन्यथानुपपत्ति अनिश्चित भी नहीं है। शब्द का जिस प्रकार प्रत्यक्ष इस प्रकार शब्दत्व का भी प्रत्यक्ष है । अतः शब्दत्वरूप हेतु के स्वरूप की प्रतीति है इसलिये हेतु को साध्यके साथ जो अन्यथानुपपत्ति है उसका अप्रतीति भी नहीं है इस कारण शम्दस्व न असिद्ध है, न विरुद्ध है, न अनेकान्तिक है। हेतु के तीन ही दोष हैं, इन तीनों से रहित होने के कारण शम्वत्व हेतु हेत्वाभास नहीं है। श्रावणत्वरूप साध्यधर्म प्रत्यक्ष से सिद्ध है इसलिये हेतु निष्फल है। निष्फलता हेतु के स्वरूप का दोष नहीं है। सिद्ध वस्तु को सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त करने के कारण यह पुरुष का दोष है। पक्ष दूषित है अतः प्रतीत साध्य धर्म विशेषण नामक पक्षामास यहां पर बस्तु का दोष है।
अकिंचित्क र हेत्वाभास का दूसरा भेद वहां कहा जाता है जहां साध्य प्रत्यक्ष अनुमान आदि से बाधित होता है। अग्नि उष्ण नहीं है-द्रव्य होने से, यह बाधित विषय नामक अकिचित्कर का उदाहरण है। अग्नि का उष्ण स्पर्श त्वचा के द्वारा प्रत्यक्ष है। अतः यहाँ पर अनुष्णत्वरूप साध्य प्रत्यक्ष से बाधित है । द्रव्यत्व हेतु अग्नि को अनुष्ण सिद्ध करने में असमर्थ है इसलिए अकिंचित्कर है।
साध्य प्रत्यक्ष से बाधित है इसलिये यहां पर हेतु साध्य को सिद्ध करने में असमर्थ कहा जाता है । हेतु का