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३४९ यह असामर्थ्य' साध्य के दोष के कारण है, अपने दोष के कारण नहीं है। इसलिये इस प्रकार का अकिचिस्कर हेतु भी हेत्वाभास नहीं है। प्रत्यक्ष आदि प्रमाण जिसका निषेध न करते हों और मो असिद्ध हो वह धर्म साध्य है। यहां पर अनुष्णत्व प्रत्यक्ष से निषिद्ध है। निषिद्ध धर्म के साथ अग्नि धर्मी का सम्बन्ध है इसलिए यहां पर निराकृतसाध्यधर्म विशेषण नामक पक्षामास है। पक्ष दोष से दूषित होने के कारण यहां बाधितविषय नामक अकिचित्कर हेत्वाभास का अलग रूप से कहना व्यर्थ है।
मूलम्-न च यत्र पक्षदोषस्तत्रावश्यं हेतु. दोषोऽपि वाच्यः, दृष्टान्तादिदोषस्याप्यवश्यं वाच्यत्वापत्तेः।
अर्थ:-जहाँ पक्ष का दोष हो वहां अवश्य हेतु का दोष भी कहना चाहिये यह उचित नहीं है । इस रीति से हेतु का दोष हो तो दृष्टान्त आदि के दोष को भी हेतु दोष के रूप में कहना पडेगा ।
विवेचनाः-पक्ष दोष होने पर भी जहां पक्ष दोष होता है वहां अवश्य हेतु दोष होता है इस नियम को मानकर यदि इसको हेत्वाभास माना जाय तो जहां दृष्टांत दोष होता है वहाँ अवश्य हेतु दोष होता है इस नियम को मानकर दृष्टान्त के दोषों को भी हेत्वाभास के रूप में कहना पडेगा । दृष्टान्त दोष जिस प्रकार हेत्वाभास नहीं है इस प्रकार पक्षाभास भी हेत्वाभास नहीं है।