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नहीं है। साध्याभाव के अधिकरण को विपक्ष कहते हैं, विपक्ष में अनुपपत्ति का अर्थात् व्याप्ति का निर्णय नहीं है, अतः विपक्ष में जिसकी वृत्ति संदिग्ध है, बह विपक्ष में सन्दिग्धवृत्तिवाला है। इसी कारण अनेकान्तिक है ।
जहाँ साध्याभाव के अधिकरण में अर्थात् विपक्ष में हेतु की वृत्ति का निर्णय है वहां भी अन्यथानुपपत्ति का निर्णय नहीं है । साध्याभाव के अधिकरण में हेतु की वृत्ति का निर्णय साध्याभाव के अधिकरण में हेतु की वृत्ति के संदेह का विरोधी है । अत: इस प्रकार के स्थल में भी हेतु में अन्य. थानुपपत्ति के निर्णय का अभाव है ।
जहां साध्याभाव के अधिकरण में हेतु की वृत्ति का सन्देह है अथवा जहाँ साध्याभाव के अधिकरण में हेतु की वृत्ति का निश्चय है वहां हेतु की अन्यथानुपपत्ति का निर्णय नहीं है। दोनों स्थानों में अन्यथानुपपत्ति का निर्णय नहीं है अतः दोनों प्रकार के अनैकान्तिकों में यह लक्षण विद्यमान है। विपक्ष में हेतु की वृत्ति के निश्चय और सन्देह के कारण प्रथम और द्वितीय अनेकान्तिक में भेद है । परन्तु अन्य थानुपपत्ति के निश्चय का अभाव दोनों में समान है।
मूलम्:-आद्यो यथा नित्यः शब्दः प्रमेयस्वात् । अत्र हि प्रमेयत्वस्य वत्तिनित्ये व्योमादौ सपक्ष इव विपक्षेऽनित्ये घटादावपि निश्चिता ।
अर्थः-प्रथम, जैसे शब्द नित्य है, प्रमेय होनेसे। यहाँ प्रमेयत्व हेतु की वृत्ति जिस प्रकार आकाश आदि