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करते हैं । सूर्य का व्यापक तेज जिस प्रकार अन्धकार को दूर करता है इस प्रकार अत्यंत लघु दीपक भी दूर करता है । यदि सर्वज्ञ का व्यापक ज्ञान कहने की इच्छा और वचन का विरोधी हो, तो अल्पज्ञ के अल्प ज्ञान को भी विरोधी होना चाहिए । पर अल्प ज्ञान विरोधी नहीं है इसलिए सर्वज्ञ का ज्ञान भी कहने की इच्छा और वचन का विरोधी नहीं है । ज्ञान का अज्ञान के साथ विरोध है । सूर्य का प्रकाश हो अथवा दोपक का, दोनों प्रकार का प्रकाश अन्धकार को हटाता है । ज्ञान भी सर्वज्ञ का हो वा अल्पज्ञ का, भज्ञान को हटाता है। सर्वज्ञ के ज्ञान का वचन के साथ विरोध नहीं है इसलिये वादी के प्रयोग में सर्वज्ञरूप विपक्ष से वचन की व्यावृत्ति संदिग्ध है और वक्तृत्वरूप हेतु अनैकान्तिक है।
यहां पर सर्वज्ञ के ज्ञान के साथ कहने की इच्छा का विरोध नहीं है--इस प्रकार का जो प्रतिपादन है वह भी जैन ताकिकों का एक पक्ष है। श्रीवादीदेवसूरिजो स्याद्वाद रत्ना. कर में कहते हैं-"सर्वज्ञ की इच्छा शुद्ध इच्छा होती है उसके द्वारा समस्त लोगों का शुभ सपादित होता है। वह रागा. स्मक नहीं होती । इसलिये वचन का और सर्वज्ञभाव का परस्पर विरोध नहीं है।"
यदि अन्य पक्ष माना जाया तो इच्छा के कारण सर्वज्ञ के ज्ञान और वचन का विरोध सर्वथा नहीं रहता। यह पक्ष ही जैन ताकिकों के अनुसार मुख्य है । इस पक्ष के अनुसार सर्वज्ञ इच्छा के कारण नहीं बोलते। सर्वज्ञ में सामान्यरूप से इच्छा नहीं रहती । इसलिये इच्छा का अवान्तरभेद विवक्षा अर्थात् बोलने की इच्छा भी नहीं है। इस पक्ष के अनुसार सर्वज्ञ का वचनव्यापार केवल चेष्टा है । सोये