________________
३३५
प्रयोग होता है वह हेतु अन्यतरासिद्ध होता है और निग्रह स्थान होता है। जिस प्रकार सांख्य का जैन के लिये, सुख आदि अचेतन है उत्पत्तिवाला होनेसे घट के समान ।
विवेचना:-जब वादी कहता है-मेरे मत के अनुसार पह हेतु असिद्ध है, परन्तु प्रतिवादी के मत में सिद्ध है। प्रतिवादी मेरे मत के अनुसार यदि इस हेतु की असिद्धता के ज्ञान से रहित हो तो, असिद्धता दोष को नहीं प्रकट कर . सकेगा और इस दशा में मेरे प्रयोजन की सिद्धि हो जायगी। इस कारण से यदि हेतु का प्रयोग हो तो वादी की अपेक्षा से अन्यतरासिद्ध है और निग्रह का स्थान है । सुख आदिको उत्पत्ति को जैन स्वीकार करता है परन्तु सांख्य किसी वस्तु की उत्पत्ति को नहीं मानता । वह सत्कार्यवादी सांख्य है । सत्कार्यवाद में कार्य अव्यक्तरूप से उपादान कारण में रहता है। उत्तर काल में सहकारियों की सहायता से प्रकट होता है। अतः सुख आदिको अचेतन सिद्ध करने के लिये उत्पत्तिमत्त्वरूप हेतु वादी सांख्य की दृष्टि से असिद्ध है, अतः अन्यतरासिद्ध है।
[विरुद्ध हेत्वाभास का निरूपण मूलम्:-साध्यविपरीतव्याप्तो विरुद्धः यथा अपरिणामी शब्दः कृतकत्वादिति । कृतकत्वं ह्यपरिणामित्वविरुडेन परिणामित्वेन व्याप्त. मिति ।