________________
३३३
हो, तो वादी इस निग्रहस्थान की प्राप्ति से पराजित होगा । उत्तरकाल में हेत्वाभास के निराकरण के लिये उसको प्रमाणों का प्रकाशन नहीं करना चाहिये । निग्रहस्थान से बार का अन्त हो जाता है। निग्रहस्थान के प्राप्त हो चुकने पर यदि विचार चलता रहे तो वार की समाप्ति ही नहीं होगी और जय-पराजय की व्यवस्था न हो सकेगी।
मलम्-अत्रोच्यते-यदा वादी सम्यग्घेतुत्वं प्रतिपद्यमानोऽपि तत्समर्थनन्याय-विस्मरणादिनिमित्तन प्रतिवादिनं प्राश्निकान् वा प्रतिबोधयितुं न शक्नोति, असिस्तामपि नानुमन्यते, तदान्यतरासिरत्वेनैव निगृह्यते । ___ अर्थः-यहां उत्तर इस प्रकार है-जन वादी अपने हेतु को निर्दोष मानता हुआ भी उसके समर्थन में युक्तियों के भूल जाने के कारण अथवा किसी अन्य कारण से प्रतिवादी को अथवा प्राश्निकों को नहीं समझा सकता और हेतु की असिद्धता को भी नहीं स्वीकार करता तब वह अन्यतरासिद्ध हेत्वाभास से ही निग्रह स्थान को प्राप्त होता है।
विवेचनाः-वादी जिस हेतु का प्रयोग करता है उसको वह स्वयं असिट नहीं मानता, भतः वारी की अपेक्षा से हेतु असिद्ध नहीं है। जिस प्रमाण के द्वारा हेतु को स्वीकार करता है उस प्रमाण को वाद के काल में वादी भूल गया है, अतः प्रतिवादी अथवा प्राश्निकों के सामने हेतु की सिद्धि