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मूलम-सोऽयमनेकषिधोऽन्यथानुपप्पोकलक्षणों हेतुरुक्तः ।
अर्थः-इस रीतिसे अनेक प्रकार का और अन्यथानुपपत्तिरूप एक लक्षणवाला हेतु कहा जा चुका ।
[हेत्वाभासों का निरूपण] मूलम्-अतोऽन्यो हेत्वाभासः । स त्रेधाअसिद्ध-विरुद्ध-अनैकान्तिकभेदात् ।
अर्थः-इस हेतु से भिन्न हेत्वाभास है और उसके तीन प्रकार हैं। (१) असिद्ध (२) विरुद्ध और (३) अनैकान्तिक ।
विवेचना:-हेतु का मुख्य स्वरूप अन्यथा अनुपपत्ति है। उससे रहित होने के कारण अहेतु होने पर भी हेतु के स्थान में प्रयोग होनेसे हेतु के समान दिखाई देता है, भतः हेस्वाभास कहा जाता है।
[असिद्धहेत्वाभास का निरूपण]
मलम्-तत्राप्रतीयमानस्वरूपो हेतुरसिरः स्वरूपाप्रतोतिश्चाज्ञानात्सन्देहाद्विपर्ययावा ।
अर्थः-जिस हेतु का स्वरूप प्रतीत नहीं होता, वह असिद्ध कहा जाता है । स्वरूप की अप्रतीति अज्ञान, सन्देह अथवा भ्रम से होती है।