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३२६ प्रकाश के होने पर चक्षु के द्वारा उसकी प्रतीति अवश्य होनी चाहिये, परन्तु नहीं होती इसलिये वह अविद्यमान है। जहां निषेध होता है वहां आरोपित स्वरूप में होता है। निषेध्य वस्तु का जो अविरोधी स्वभाव है उसकी यदि अनुपलब्धि हो, तो वह वस्तु वहां नहीं हो सकती।
दूसरे उदाहरण में-पनस निषेध्य है और उसके साथ अविरुद्ध उसका व्यापक पादपत्व है उसको अनुपलब्धि है, अतः अविरुद्ध व्यापकानुपलब्धि है।
तृतीय उदाहरण में प्रतिबंध रहित शक्तिवाला बीज निषेध्य है । उसके साथ अविरुद्ध और उसका कार्य अंकुर है उसका दर्शन नहीं अतः अविरुद्ध कार्यानुपलब्धि है । सहकारी कारणों की संपूर्ण रूप में उपस्थिति हो और कोई प्रतिबंधक न हो तो मुख्य कारण प्रतिबंध रहित शक्तिवाला कहा जाता है । अंकुर की उत्पत्ति में बीज मुख्य कारण है । क्षेत्र हैं जल, वायु और ताप आदि सहकारी कारण हैं। ये समस्त सहकारी उपस्थित हों और कोई प्रतिबंधक न हो, तो बीज से अंकुर अवश्य उत्पन्न होता है । इस प्रकार की विशिष्ट व्यवस्थावाले बीज के साथ अंकुर का विरोध नहीं है। उचित परिणाम में जल आदि न मिले और कोई प्रतिबंधक हो तब बीज होने पर भी अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती। कार्य के अदर्शन से बीन के अभाव का अनुमान युक्त नहीं है। सहकारियों के न होने पर अथवा प्रतिबंधकों के उपस्थित होने पर बीज होने पर भी अंकुर नहीं होता, अतः अंकुर के अदर्शन से प्रतिबंध रहित शक्तिवाले बीज के अभाव का अनुमान होता है।