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३.१
यह निश्चय किया जा सके वही कारण कार्य की अनुमिति कराता है।
विवेचना:-कार्य किसी देश और किसी काल में कारण के बिना नहीं हो सकता । परन्तु कारण सदा कार्य को उत्पन्न नहीं करता। वह कार्य के बिना भी देखा जाता है। 'क-ख' आदि वर्ण. कंठ-तालु आदिके साथ शरीर के अन्तवर्ती वायु का संयोग जब तक न हो तब तक नहीं उत्पन्न होते । परन्तु कंठ-तालु आदि वर्गों को उत्पत्ति के बिना भी रहते हैं। इसलिये कंठ आदि के द्वारा यदि ककार आदि वर्णों की अनुमिति की जाय तो वह युक्त नहीं है। वर्णों की उत्पत्ति के बिना भी कंठ आदि रहते हैं । कार्य के बिना भी कारण रह सकता है अतः कारण से कार्य का अनुमान युक्त नहीं है। कार्य के अनुमान में कारणरूप हेतु अनेकान्तिक हेत्वाभास हो जाता है। इसीलिये धूम के अनुमान में वह्नि रूप हेतु अनेकान्तिक हेत्वाभास का प्रसिद्ध उदाहरण है।
इस शंका के उत्तर में सिद्धान्ती कहता है, केवल कारण से कार्य का अनुमान नहीं हो सकता; परन्तु कारण विशेष से कार्य का अनुमान हो सकता है।
देश, काल और अवस्था के भेद से कारण उत्तरकाल में कार्य को अवश्य उत्पन्न करता है । इस प्रकार के कारण का कार्य के साथ नियत संबध होता है । मेघ वर्षा का कारण है । वर्षा बिना भो मेघ दिखाई देते हैं। परन्तु जब बिजली बार बार चमकती है और गर्जना भो बार बार होती है और मेघ जब अत्यन्त नीचे दिखाई देते हैं तब कुछ काल के अनन्तर अवश्य वर्षा होती है । इस प्रकार के मेघों