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का वर्षा के साथ नियत संबंध है। कारण के विशेष स्वरूप को जानने के लिये योग्य पुरुष चाहिये। कारण के विशेष स्वरूप को न जानकर जब कारण से कार्य का अनुमान किया जाता है तब अनुमान के कर्ता का अपराध है । कारणरूप हेतु में दोष नहीं होता । जब कार्य की उत्पत्ति में जितने प्रतिबंधक कारण हैं उन सब का अभाव हो और अन्य सहकारी कारण सम्पूर्णरूप से उपस्थित हों, तब कारण कार्य के अनुमान में निर्दोष हेतु हो सकता है। कारण विशेष के ज्ञान में समर्थ ज्ञाता यदि हो, तो कार्य के अनुमान में भ्रम नहीं होता।
मूलम्:-कश्चित् पूर्वचरः, यथा उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयान्यथानुपत्तरित्यत्र कृत्तिकोदयानन्तर मुहर्तान्ते नियमेम शकटोदयो जायत इति कृत्तिकोदयः पूर्वचरो हेतुः शकटोदयं गमयति ।
अर्थः-अब कृत्तिका नक्षत्र का उदय है इसलिये शकट नक्षत्र का उदय होगा, इस अनुमान में कृत्तिका का उदय हो चुकने पर मुहूर्त के अन्त में अवश्य शकट नक्षत्र का उदय होता है, इस कारण कृत्तिका का उदयरूप पूर्वचर हेतु शकट के उदय की सिद्धि करता है।
मूलम्-कश्चित् उत्तरचरः, यथोदगाद्भरणिः प्राक्, कृत्तिकोदयादित्यत्र कृत्तिकोदयः, कृत्ति