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यहां सर्वथा एकान्त निषेध्य है। समस्त वस्तु केवल सत् हैं अथवा केवल असत् है इत्यादि मत सर्वथा एकान्त है। इस एकान्त के स्वभाव का विरोधी अनेकान्त है । एक अपेक्षा से अर्थ ' सत् है और अन्य अपेक्षा से असत् हैइत्यादि अनेकान्त है। अनेकान्त स्वभाव एकान्त स्वभाव का विरोधी है-उसकी प्रतीति होती है, अतः एकान्त का अभाव सिद्ध होता है। विरोधी स्वभाव की उपलब्धि है इसलिये वह उपलब्धिरूप है। उपलब्धि के अभाव से यहां एकान्त का निषेध नहीं है, अतः विरुद्धोलब्धि अनुपलब्धिरूप नहीं है । जल का शीत स्पर्श और अग्नि का उष्ण स्पर्श परस्पर विरोधी हैं। जहां उष्ण स्पर्श है वहां शीत स्पर्श का अभाव सिद्ध होता है। उष्ण स्पर्श भावरूप है वह शीत स्पर्श का अभावरूप नहीं है । अपेक्षा से सत्त्व और असत्त्वरूप अनेकान्त धर्म एकान्त सत्त्व का अभावरूप नहीं है । अने. कान्त स्वरूप भावात्मक है उसको प्रतीति उपलब्धि है, वह अनुपलब्धि नहीं है। जब अनेकान्त की उपलब्धि होती है तब एकान्त की उपलब्धि नहीं होती, परन्तु अनेकान्त की उपलब्धि स्वयं अनुपलब्धिरूप नहीं है । पहले रण स्पर्श भावरूप में उपलब्ध होता है उत्तरफाल में शीत स्पर्श के रूप से उपलब्धि नहीं होती, अतः उरण और शीत स्पर्श का विरोध प्रतीत होता है। विरोध के ज्ञान में अर्थ के अपने स्वरूप की उपलब्धि मुख्य कारण है और विरोधी अर्थ के स्वरूप में अनुपलब्धि सहकारी कारण है । इसी रीति से अनेकान्त स्वभाव की अपेक्षा के भेद से सत् और असत् रूप में उपलब्धि मुख्य है । इसके काल में एकान्त सत् अथवा एकान्त असत् की उपलब्धि नहीं होती। यह उपलब्धि तो