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मगशिरः, पूर्वफा(फल्गुन्युदयात् । नास्त्यस्य मिथ्याज्ञानं, सम्यग्दर्शनादिति ।
अर्थः-सर्वथा एकान्त का अभाव है, अनेकान्त की प्रतीति के होनेसे; इस मनुष्य को तत्त्व का निश्चय नहीं है, तत्त्व में संदेह होनेसे, इस मनुष्य को क्रोध की शान्ति नहीं है, मुख के विकार होनेसे इस मनुष्य का असत्य वचन नहीं है, राग आदिके कलंक से रहित ज्ञान के साथ संबंध होनेसे, मुहूर्त के अनन्तर पुष्य नक्षत्र का उदय नहीं होगा, रोहिणी का उदय होने से मुहूर्त पहले मृगशिर नक्षत्र का उदय नहीं, पूर्व फल्गुनी नक्षत्र के उदय होनेसेः इस मनुष्य को मिथ्याज्ञान नहीं है, सम्यग दर्शन होनेसे-ये उदाहरण हैं।
मूलम्:-अत्रानेकान्तः प्रतिषेयस्यैकान्त. स्य स्वभावतो विरुद्धः । तत्वसंवहश्च प्रतिषेध्य. तत्व निश्चय विरुडतदनिश्चयव्याप्यः । वदनविका. रादिश्च क्रोधोपशमविरुडतदनुपशमकार्यम् । रागाद्यकलङ्कितज्ञानकलितत्वं चासत्यविरुद्धसत्यकारणम् । रोहिण्युद्गमश्च पुष्यतारोद्गमविरुद्धमृगशीर्षोदयपूर्ववरः । पूर्वफल्गुन्युदयश्च