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वृक्ष के साथ भेद और अमेव है । शिशपा वश्च से सर्वथा भिन्न नहीं है । शिशपा वृक्षात्मक है परन्तु रम रूपात्मक नहीं है । रूप से वह सर्वथा भिन्न है, अतः रस हेतु स्वभावरूप हेतु नहीं है।
कार्य और कारण में पूर्वापर भाव होता है । अग्नि पूर्व भावी है और धूम उत्तरकाल में उत्पन्न होता है । इसलिये उन दोनों में कार्य-कारणभाव है । परन्तु रस और रूप में पूर्वापरभाव नहीं है। दोनों का काल समान है । इससे जब रूप का अनुमान होता है तब रूप का वही काल होता है. जो रस का होता है, अतः रस हेतु सहचर है । वह कार्य अथवा कारण नहीं है।
मूलम्:-एतेषदाहरणेषु भावरूपानेवारन्यादीन साधयन्ति धूमादयो हेतवो भावरूपा एवेति विधिसाधकविधिरूपाः। - अर्थ:-इन उदाहरणों में धूम आदि हेतु स्वयं भावरूप है और जिन अग्नि आदिको सिद्ध करते हैं वे भी भावरूप हैं। इसलिये ये हेतु विधिसाधक और विधिरूप है।
मूलम्:-त एवाविरुहोपलब्धय इत्युच्यन्ते। अर्थः-वही हेतु अविरुद्धोपलब्धि कहे जाते हैं। विवेचना: -साध्य के साथ-व्याप्य-कार्य कारण-पूर्वचरउत्तरचर और सहचर हेतुओं का विरोध नहीं है, अतः ये हेतु अविरुद्ध हैं । अविरुद्धों को उपलब्धि अर्थात् प्रतीति