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अर्थः-कोई हेतु सहचर होता है । जिस प्रकार बिजौरा रूपवान होना चाहिये अन्यथा वह रसवाला नहीं हो सकता । इस अनुमान में रस सहचर हेतु है। रस अवश्य रूप के साथ रहता है । रूप के अभाव में वह नहीं हो सकता। अतः वह रूप का अनुमान कगता
विवेचना:--अन्धकार में जब कोई बिजौरा को खाता है तव प्रकाश न होनेसे वह रूप को नहीं देख सकता, रस का अनुभव करता है। इस कारण रूप का अनुमान करता है । रस विधिरूप हेतु है और रूप का सहचारी है। जितने अर्थ पुद्गल से उत्पन्न हुए हैं, वे समस्त रूप-रस-गंध-और स्पर्शवाले हैं । जैन मत के अनुसार रस रूप के बिना नहीं हो सकता , अतः रूप के अनुमान में रस सहचर हेतु है।
मलम-परस्परस्वरूपपरित्यागोपलम्भ-पौर्वापर्याभावाभ्यां स्वभाषकार्यकारणेभ्योऽस्य भेदः।
अर्थः-परस्पर के स्वरूप का त्याग प्रतीत होता है और पौर्वापर्य का अभाव है, इसलिये स्वभाव कार्य और कारण हेतुओं से इस सहचर हेतु का भेद है।
विवेचना:-रूप का जो स्वरूप है वह रस का नहीं है और रस का जो स्वरूप है वह रूप का नहीं। रूप और रस में परस्पर सर्वथा भेद है, अतः रसरूप हेतु स्वभाव हेतु नहीं है । स्वभाव हेतु जिस साध्य का अनुमान करता है उसके साथ उसका भेद और अभेद होता है। शिशपा का