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होती है और उसके द्वारा साध्य की अनुमिति होती है, अतः अविरुदोपलब्धि'नाम से भी ये हेतु कहे जाते हैं।
मूलम्-दितीयस्तु निषेधसाधको विरुद्धो. पलब्धिनामा । स च स्वभावविरुद्धतव्याप्या. घपलब्धिभेदात् सप्तधा।
अर्थ:-द्वितीय विधिरूप हेतु निषेध का साधक है और उसका नाम विरुद्धोपलब्धि है और वह स्वभाव विरुद्ध उपलब्धि व्याप्य विरुद्ध उपलब्धि आदि भेद से सात प्रकार का है ।
विवेचना:-विधि साधक हेतु का द्वितीय भेद निषेध का साधक है। वह साध्य के साथ जो विरुद्ध है उसकी उपलब्धिरूप है, अतः विरुद्धोपलब्धि कहा जाता है। उसके सात भेद इस प्रकार हैं:-१ निषेध्यस्वभाव विरुद्धोपलब्धि२ निषेध्य व्याप्य विरुद्धोपलब्धि -३ निषेध्य विरुद्धकार्योपलब्धि ४ निषेध्यादरुद्ध कारणोपलब्धि ५ निषेध्यविरवपूर्वचरउपाय-६ निषेध्य विरुद्धोत्तरचरोपलब्धि ७ निषेध्यविरुद्धसहचरोपलब्धि
मूलम्:-यथा नास्त्येव एकान्तः, अनेकान्तस्योपलम्भात् । नास्त्यस्य तत्वनिश्चयः, तत्र सन्देहात् । नास्त्यस्य क्रोधोपशान्तिः, पदनविकारादेः । नास्त्यस्यासत्यं वचः, रागाधकल. द्वितज्ञानकलितत्वात् । नोद्गमिष्यति मुहूर्तान्ते पुष्यतारा, रोहिण्युद्गमात् । नोदगान्मुहूर्तात्पूर्व