________________
दृष्टांत का वचन उचित है । इसी रीति से भिन्न भिन्न प्रकार की बुद्धि वाले प्रतिपाद्य पुरुषों के लिये पक्ष आदि का प्रयोग परार्थानुमान में उचित है।
-: हेतु के भेद :मूलम्:- स चायं द्विविधः-विधिरूपः प्रति. षेधरूपश्च । तत्र विधिरूपो द्विविधः-विधिसाधकः प्रतिषेधसाधकश्च । तत्राद्यः षोढा,
अर्थः-यह हेतु दो प्रकार का है-विधिरूप और निषेधरूप । उनमें विधिरूप दो प्रकार का है विधिसाधक और निषेध साधक । उनमें पहला छः प्रकार का है।
विवेचना:-साध्य की उपपत्ति और अन्यथा अनुपपत्ति से प्रयोग में जिस प्रकार हेतु के दो भेद हैं इस प्रकार हेतु के प्रकार में भी दो भेद हैं । उनमें जो हेतु विधिरूप है वह भावात्मक है और जो निषेधरूप है वह अभावात्मक है । जो विधिरूप हेतु है वह जिस प्रकार भावरूप साध्य को सिद्ध करता है इस प्रकार अभावरूप साध्य को भी सिद्ध करता है। कुछ लोग भावरूप हेतु को केवल भावरूप साध्य का साधक कहते है, और निषेधरुप हेतु को केवल अभावरूप साध्य का साधक कहते हैं । यह मत युक्त नहीं है । जैन मत के अनुसार भावरूप और अभावरूप दोनों प्रकार के हेतु भावात्मक और अभावात्मक साध्य को सिद्ध कर सकते हैं। व्याप्ति के कारण हेतु साध्य की सिद्धि करता है । मावात्मक हेतु व्याप्ति के कारण जिस प्रकार भावरूप साध्य की सिद्धि