________________
विवेचना:-शब्द प्रयत्न से उत्पन्न होता है इसलिये अनित्य है-इस अनुमान में प्रयत्न से उत्पत्ति हेतु है वह भावरूप है । अनित्यत्व अर्थात् परिणाम साध्य है वह भी भावरूप है । जो अर्थ प्रयत्न से उत्पन्न होता है वह अर्थ उत्पन्न होने के अनन्तर कुछ काल में इस प्रकार के परिणाम को प्राप्त करता है जो उत्पत्ति के काल में विद्यमान परिणाम से सर्वथा भिन्न होता है। घट प्रयत्न से उत्पन्न होता है। कुछ काल तक घट का जो आकार है, वह देखने में आता है। धट रूप में होने पर भी उसमें कोई न कोई परिणाम होता रहता है । परन्तु जब दंड आदिके प्रहार से घट टूट जाता है, तब कपालों के रूप में परिणाम होता है । यह कपालरूप में परिणाम हो विनाश, कहा जाता है । जैन मत के अनुसार विनाश, भाव से सवथा भिन्न-अभावरूप नहीं है। कपालरूप परिणाम विनाश है और विनाश होने क कारण घट अनित्य कहा जाता है। न्याय के मत में जिस प्रकार विनाश अभावरूप है इस प्रकार जैन मत में विनाश अभाव रूप नहीं किन्तु परिणामरूप है । घट की स्थिति में प्रतिक्षण जो उत्पत्तिरूप परिणाम होते हैं वे जिस प्रकार भावरूप हैं इस प्रकार घट की स्थिति जब नहीं होती तब विनाशरूप परिणाम भी भावरूप होते हैं। कपाल आदि रूप में विनाश भावात्मक है। प्रत्येक अर्थ भावात्मक और अभावात्मक है । जो अभावत्मकरूप है वह भी सर्वथा भाव से भिन्न नहीं है । घटका विनाश सर्वथा घटात्मक नहीं है । यदि नाश भावात्मक ही हो, तो नष्ट होने के अनन्तर भी घटरूप में घट की प्रतीति होनी चाहिये । अत: आकार की अपेक्षा से विनाश अभावरूप है। परन्तु अन्य आकार की अपेक्षा से वही विनाश भावरूप है । घट