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का जब कपालरूप में परिणाम होता है तब वह परिणाम विनाशात्मक होने पर भी भावात्मक है । इस भावात्मकरूप के कारण प्रकृत अनुमान में अनित्यत्वरूप परिणाम भावात्मक साध्य है। इसलिये इस उदाहरण में प्रयत्न से उत्पत्तिरूप हेतु स्वयं भावात्मक है और भावात्मक अनित्यत्वरूप साध्य का साधक कहा जाता है। यदि अनित्यत्वरूप साध्य केवल अभावरूप हो तो यह हेतु भावात्मक साध्य का साधक नहीं हो सकता।
प्रयत्न से उत्पत्तिरूप हेतु अनित्यत्वरूप साध्य का कार्य अथवा कारण नहीं है जिस प्रकार धूम अग्नि का कार्य है। इस प्रकार प्रयत्न से उत्पत्ति अनित्यत्व का कार्य नहीं है और जिस प्रकार अग्नि धूम का कारण है इस प्रकार अनित्यत्व रूप परिणाम प्रयत्न से उत्पत्ति का कारण नहीं है। इसी प्रकार प्रयत्न से उत्पत्ति अनित्यत्वरूप साध्य का पूर्वचर उत्तरचर अथवा सहचररूप नहीं है। जहां जहां प्रयत्न से उत्पत्ति है वहां वहां अनित्यता है, अतः प्रयत्न से उत्पत्ति अनित्यता की व्याप्य है। साध्य और हेतु में जब व्याप्यव्यापक भाव होता है, तभी व्याप्ति के ज्ञान से अनुमान की उत्पत्ति होती है। इस कारण समस्त हेतु साध्य के व्याप्य हैं। कार्य कारण आदिरूप जितने भी हेतु हैं वे भी साध्य के व्याप्य है । तो भी यहां पर जो हेतु कार्य अथवा कारण आदि रूप नहीं है-उस व्याप्य का ग्रहण है । अतः इस व्याप्य हेतु में कार्य और कारण रूप हेतुओं का अन्तर्भाव नहीं हो सकता। व्याप्य हेतु का ही दूसरा नाम स्वभाव है। शिशपा है इसलिये वृक्ष है यह उदाहरण बौद्धों के अनुसार स्वभाव हेतु का प्रसिद्ध है । बौद्धों के अनुसार शिशपा के साथ वृक्ष