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संबंध नहीं होना चाहिये । परन्तु एक काल में अनेक गायों के साथ संबंध को आप मानते हो. इसलिये गोरव को भी अनेक मानना चाहिये । अनेक घटों का अनेक देशों के साथ एक काल में संबंध प्रत्यक्ष सिद्ध है । गोत्व यदि अनेक हो, तो उसका भी अनेक गायों के साथ संबंध हो सकता है।
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• इस रोति से आप नैयायिक को आपत्ति देते हो। यहां वादी जैन है, उसके अनुसार सर्वथा एकता सिद्ध नही हैं। असिद्ध एकता अनेक व्यक्तियों के साथ संबंध के अभाव को सिद्ध करने के लिये हैतु रूप में न होनी चाहिये ।
मूलम्:- सत्यम्, एकधर्भोपगते (मे) धर्मान्तरसन्दर्शनमात्रं (त्र ) तत्परत्वेनैतदापादनस्य वस्तुनिश्चायकत्वाभावात् प्रसङ्गविपर्ययरूपस्य मौलहेतोरेवतन्निश्चायकत्वात्, अनेकवृत्तित्वव्यापकानेकत्वनिवृत्यैव तन्निवृत्तेः मौल हेतुपरिकरश्वेन प्रसङ्गोपन्यासस्यापि न्याय्यत्वात् ।
अर्थः- सत्य है । आपत्ति का यह प्रकाशन वस्तु का निश्चय नहीं करता । एक धर्म को स्वीकार करने से अन्य धर्म को अवश्य मानना पडेगा । केवल इतनी वस्तु को यह आपत्ति प्रकट करती है । प्रसंग का विपर्यय रूप मूल हेतु ही वस्तु को निश्चित करता है । अनेकवृत्तित्व के व्यापक अनेकत्व की निवृत्ति से ही अनेक