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अर्थः-व्याप्ति का निर्णय तर्क से ही होता है और व्याप्ति का स्मरण पक्ष और हेतु के प्रदर्शन से सिद्ध हो जाता है इसलिये इन प्रयोजनों के लिये भी दृष्टान्त आदि का प्रयोग आवश्यक नहीं है । समर्थन के अभाव में दृष्टान्त आदि प्रतिपाद्य के वोध के कारण नहीं होते। अतः उनके समर्थन से ही दृष्टान्त आदि अन्यथासिद्ध हो जाते हैं। असिद्धता आदि दोषों का निराकरण करके अपने साध्य के साथ हेतु की व्याप्ति का साधन समर्थन कहा जाता है । उसके द्वारा ही अन्य को ज्ञान हो सकता है। इस दशा में अन्य प्रयास की आवश्यकता क्या है !
विवेचमाः-यदि आप कहो दृष्टान्त का वचन व्याप्ति के निर्णय के लिये है, तो वह युक्त नहीं । कोई एक व्यक्ति दृष्टान्तरूप में होता है। एक व्यक्ति व्याप्ति का निश्चय नहीं करा सकता। अन्य व्यक्तियों में व्याप्ति के निश्चय के लिये अन्य दृष्टान्त की आवश्यकता होगी । अन्य दृष्टान्त भी व्यक्ति रूप है, इसलिये अन्य दृष्टान्तों की आवश्यकता खडी होगी। इस रीति से अनवस्था होगी। व्याप्ति का निश्चय तर्क से होता है उसके लिये दृष्टान्त उपयोगी नहीं है।
पक्ष के वचन से साध्य का ज्ञान होता है और हेतु के वचन से हेतु का ज्ञान होता है। हेतु और साध्य की व्याप्ति का ज्ञान पूर्व काल में जिसको हआ है वह पक्ष और हेतु के वचन को सुनकर अवश्य व्याप्ति का स्मरण करता है। व्याप्ति