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का बाधक प्रमाण है। उसको उपस्थित नहीं किया गया; अतः प्रसंग भी युक्त नहीं है इस प्रकार कहता है। - विवेचना:-यहां शंका होती है-इस रीति से यदि प्रसंग स्वीकार किया जाय तो सांख्य का अनुमान भी प्रसंगरूप हेतु बन नायगा और उसका भी पर्यवसान प्रसंग से विपर्यय में हो सकेगा । आप बुद्धि को उत्पत्ति वाली मानते हैं।
त्पत्ति का व्यापक अचैतन्य है अर्थात् चैतन्य का अभाव है। बडि पदि उत्पत्ति वाली हो तो अचेतन भी होनी चाहिये। परन्तु आप बुद्धि को अचेतन नहीं मानते, इसलिये वह उत्पत्ति वाली भी नहीं होनी चाहिये ।
इसके उत्तर में सिद्धान्ती कहता है इस रीति से यदि सांख्य का अनुमान प्रसंगरूप हो, तो बुद्धि यदि उत्पत्ति वाली हो तो अचेतन हो' यह आपत्ति प्रकट होगी। इस आपत्ति के सहायकरूप में आपत्ति से पूर्व काल में जो उत्पत्ति वाला अर्थ है वह अचेतन है जिस प्रकार घट आदि, और बुद्धि उत्पत्ति वाली हैं इन दो अवयवों का प्रयोग आवश्यक होगा। इस प्रसंग का विपर्यय बुद्धि उत्पत्ति वाली नहीं है, चेतन होने से इस रूप में होगा । यहां चेतनत्व मूल हेतु है उसकी व्याप्ति उत्पत्तिमत्व के अभाव के साथ होनी चाहिये। जहां चेतनत्व है वहां उत्पत्तिमत्व का अर्थात् उत्पत्ति का अभाव है इस रूप को व्याप्ति होनी चाहिये । परन्तु सांख्य के मत में बद्धि भी चेतन नहीं है । उसके अनुसार बुद्धि प्रकृति का विकार है और इस कारण अचेतन है। चेतनत्व और उत्पत्ति का अभाव इन दोनों की व्याप्ति तब सिद्ध हो सकती है जब चंतन्य और उत्पत्ति में विरोध सिद्ध हो, परन्तु इस विरोध