________________
८७
प्रतिवादी जैन के सामने सांख्य कहता है । बुद्धि उत्पत्तिवाली है। जिन पदार्थों में उत्पत्ति है वे पदार्थ अचेतन देखे जाते हैं। घट आदिको आप उत्पत्तिवाला और अचेतन स्वीकार करते हो इसलिये घट आदिके समान उत्पत्तिवाली होनेसे बुद्धि अचेतन है।
मृलम:-तदेतदपेशल वादिप्रतिवादिनोगगमप्रामाण्यविप्रतिपत्तेः, अन्यथा तत एव साध्यसिद्धिप्रसङगात । परीक्षापूर्वमागमाभ्यु. पगमंऽपि परीक्षाकाले तद्वाधात् ।
अर्थ:-यह कथन युक्त नहीं । वादी और प्रति- . पादी का आगम के प्रामाण्य के विषय में मतभेद है। यदि आगम के प्रामाण्य के विषय में मतभेद न हो तो आगम से ही साध्य की सिद्धि हो जानी चाहिये। परीक्षा से पूर्व काल में आगम का स्वीकार है परन्तु परीक्षा के काल में उसका बाध है।
विवेचना:-अनुमान के प्रयोग के अवसर में आगम को प्रमाणभूत स्वीकार कर के साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती। धादी और प्रतिवादी परस्पर के आगम को प्रमाणरूप में नहीं स्वीकार करते । अत: प्रतिवादी के आगम से सिद्ध अर्थ हेतुरूप में नहीं हो सकता । आगम के प्रामाण्य से यदि साध्य की सिद्धि हो. तो हेतु का कथन व्यर्थ है। जैन जिस आगम को स्वीकार करता है उसके अनुसार बुद्धि उत्पन्न भी होती है और चेतन भी है। प्रतिवादी जन जब आगम के