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दुडावम्पत्तिमत्त्वं साङ्ख्याने ( रूयेन) नेवाभ्युपगम्यते इनिः,
अर्थः- प्रतिवादी के द्वारा आगम से स्वीकृत अर्थ का वचन परार्थानुमान है। उदाहरण- बुद्धि अचेतन है उत्पत्तिवाली होने से घट के समान । यह सांख्य का अनुमान है। यहां बुद्धि में उत्पत्तिमत्त्व को सांख्य नहीं स्वीकार करता । इस प्रकार कुछ लोग कहते हैं ।
विवेचना:- जो प्रत्यक्ष है और जिसकी अन्यथा अनुपपत्ति निश्चित है वह हेतु होता है । वादी और प्रतिवादी दोनों जिसको स्वीकार करते हैं वह हेतु हो सकता है। कुछ लोग कहते हैं. वादी जिम अर्थ को स्वय नहीं स्वीकार करता परन्तु प्रतिवादी अपने आगम के अनुसार जिसको स्वीकार करता है वह अर्थ हेतु रूप में हो सकता है । वे लोग कहते हैं प्रतिबादी के लिये वाढी साधन का प्रयोग करता है । साधन सिद्ध होना चाहिये। जो साधन वादी के मत में सिद्ध नहीं है परन्तु प्रतिवादी के आगम से सिद्ध है वह प्रतिवादी के लिये सिद्ध हेतु है । उस हेतु द्वारा प्रतिवादी के अनुसार साध्य की सिद्धि हो सकती है वादी के लिये हेतु की सिद्धि आवश्यक नहीं है । वादी के अनुसार हेतु सिद्ध हे अथवा असिद्ध हम विचार का कोई लाभ नहीं इसलिये प्रतिवादी के हो मत में माना हुआ हेतु भी साध्य की सिद्धि में समर्थ है। सांख्य का प्रकृत अनुमान इसी प्रकार का है। कारण में जो वस्तु विद्यमान नहीं उसकी उत्पत्ति को सांख्य नहीं स्वीकार करता। उसके अनुसार कारण में ओ वस्तु अव्यक्तरूप से विद्यमान है उसकी अभिव्यक्ति होती है ।
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