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विवक्षा से साध्य विशिष्ट धर्मों पक्ष कहा जाता है तब दो ही अंग होते हैं । धर्म विशिष्ट धर्मो का दूसरा नाम पक्ष है।
मूलम: - धर्मिण: प्रसिडिश्च ववचित्प्रमाणात् क्वचिद्विकल्पात् क्वचित्प्रमाणविकल्पाभ्याम् ।
अर्थः- धर्मों की प्रसिद्धि कहीं पर प्रमाण से कहीं पर विकल्प से और कहीं पर प्रमाण और विकल्प दोनों से होती है ।
विवेचना:- अनुमान से उत्पन्न प्रतीति के काल में धर्म विशिष्ट प्रसिद्ध धर्मों साध्य होता है इस प्रकार कहा गया है । यहाँ पर प्रसिद्ध का अर्थ है जिसकी प्रसिद्धि है। धर्मों की प्रसिद्धि किसके द्वारा होती है, इस अपेक्षा के होनेके कारण कहा है, प्रसिद्धि प्रमाण से अथवा विकल्प से होती है ।
मूलम्-तत्र निश्चितप्रामाण्यकप्रत्यक्षाद्यन्यततत्वं प्रमाणप्रसिद्धत्वम् । अनिश्चितप्रामाण्यप्रत्ययगोचरत्व विकल्पप्रसि उम् । तद्द्वयविषयत्वं प्रमाणविकल्पप्रसिद्धत्वम् ।
अर्थ :- जिसका प्रामाण्य निश्चित है इस प्रकार के प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों में से किसी एक प्रमाण के द्वारा जो निश्चित है वह प्रमाण से प्रसिद्ध कहा जाता है । जिसका प्रामाण्य अथवा अनामाण्य निश्चित नहीं इस प्रकार के ज्ञान का जो विषय है वह विकल्प से प्रसिद्ध