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२६२ भभाव के साथ है। व्याप्ति के सिद्ध होने पर भी जब प्रकृत शशशग आदि धर्मों में वह हेतु दिखाई देता है तो वह अमाव की अनुमिति करता है"-इस रीति का उत्तर बाधक प्रमाणों के अभावरूप हतु के लिये भी हो सकता है। यह हेतु भाव का धर्म होने पर भी सत्ता को सिद्ध कर सकता है। सामान्यरूप से इस हेतु की भाव के साथ व्याप्ति है। जहाँ बाधकाभाव है वहाँ अर्थ सत् है यह व्याप्ति है। तो भी जब विकल्प से सिद्ध धर्मों में हेतु प्रतीत होता हे तब वहां सत्ता को सिद्ध करता है।
मूलम्-विकल्पस्याप्रमाणत्वाद्विकल्पसिद्धो धर्मी नास्त्येवेति नैयायिकः । ___अर्थः-नैयायिक कहता है, विकल्प अप्रमाण है, अतः विकल्प सिद्ध धर्मी नहीं हो सकता ।
विवेचना:-प्रमाणों से प्रमेय की सिद्धि होती है। विकल्प प्रमाणरूप नहीं है। अप्रमाण विकल्प से यदि साध्य की सिद्धि हो जाय तो प्रमाण की परीक्षा व्यर्थ होगी । धर्मी हेतु का आश्रय है । विकल्प से धर्मोरूप आश्रय की सिद्धि नहीं, इस कारण हेतु आश्रय में नहीं रह सकता। इस रीति से धर्मों को विकल्प से सिद्ध मानकर जब आप हेतु का प्रयोग करते हैं तब आपका हतु आयासिद्ध हो जायगा।
मूलम्:-मस्येत्थंध चनस्यैवानुपपत्तेस्तूष्णी-- म्भावापत्तिः विवल्पसिधर्मिणोऽप्रसिद्धी तत्प्रतिषेधानपपत्तेरिति ।