________________
२७५
|
रूप विशेषण अंश | आत्मारूप अर्थ प्रसिद्ध है और उत्पत्ति और विनाश का अभावरूप अर्थ भी प्रसिद्ध है । जिस प्रकार खर के साथ विषाण का संबंध नहीं इस प्रकार आत्मा आदि अर्थ के साथ पर्याय को अपेक्षा से उत्पत्ति और विनाश के अभाव का संबंध नहीं है । इस रीति से खंडरूप में प्रसिद्धि हो सकती है। सांख्य और न्याय आदिके अनुसार आत्मा और परमाणु आदि में उत्पत्ति और विनाश का अभाव प्रसिद्ध है ।
जैन सिद्धान्त के अनुसार द्रव्य की अपेक्षा से आत्मा और परमाणु आदिमें उत्पत्ति और विनाश का अभाव प्रसिद्ध है जो द्रव्यरूप से प्रसिद्ध है उसके अभाव का संबंध पर्याय की अपेक्षा से नहीं इस प्रकार जैन प्रतिपादन करता है । घट-पट आदिके समान पर्याय को अपेक्षा से उत् त्ति और विनाश का संबंध आत्मा परमाणु आदिके साथ भी है। इस साध्य की सिद्धि के लिये अर्थ क्रिया को नियामकता के अभाव को हेतुरूप में कहता है। प्रत्येक अर्थ किसी न किमी अर्थ क्रिया को करता है। पर्याय से यदि उत्पत्ति और विनाश न हों तो कोई भी अर्थ क्रिया नहीं हो सकती । अतः प्रत्येक प्रथं पर्याय की अपेक्षा से उत्पत्ति और विनाश के साथ संबद्ध है । जो अर्थ कारण है वह सदा कार्य को नहीं उत्पन्न करता । एक काल में कार्य को उत्पन्न करता है और अन्य काल में कार्य को नहीं उत्पन्न करता । पर्यायों की उत्पत्ति और विनाश के बिना यदि कारणभूत अर्थ कार्य को उत्पन्न करें तो सदा कार्यों को उत्पन्न करना चाहिये । कोई भी काल इस प्रकार का नहीं होना चाहिये जिसमें कार्य की उत्पत्ति न हो । काल के भेद से कार्य की उत्पत्ति होती है, अतः जब कार्य को उत्पत्ति नहीं उस काल में कारण का