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नहीं । इसलिये खर शुग का अभाववाला है इस प्रकार कहा जाता है । जो प्रतियोगी अर्थ प्रसिद्ध है उसका अभाव होता है घट आदिके समान शंग भी प्रसिद्ध है इस लिये उसका अभाव हो सकता है, इस पम के अनुसार शश. बाग घट आदिरे समान प्रसिद्ध नहीं इसलिये उसका अभाव नहीं हो सकता।
मूलम्:-एकान्त नित्यमर्थक्रियासमर्थ न भवनि क्रमयोगपनिरूपकत्वाभावेनार्थक्रिया. नियामकत्वाभावो नित्यत्वा दो सुसाध इति सम्यग्निभाल नीयं स्वपरसमयदत्तदृष्टिभिः।। ___ अर्थः-एकान्तरूप से नित्य अर्थ, अर्थक्रिया में समर्थ नहीं होता । कारण, उसमें क्रम और योगपद्य का अभाव है। इस अनुमान में भी जब विशेषों का झान होता है तब क्रम और योगपद्य की निरूपकता के अभाव से अर्थ क्रिया की नियामकता का अभाव नित्यत्व आदिमे क्लेश के विना सिद्ध हो सकता है । जिन लोगों की स्वसमय और परसमय में दृष्टि है उन लोगों को इस विषय में उत्तम रीति से विचार करना चाहिये।
विवेचन:- खर का विषाण नहीं है इत्यादि स्थल में जब खंड-रूपसे प्रसिद्धि हो सकती है तब विकल्प द्वारा धर्मी की प्रसिद्धि व्यर्थ है । परन्तु इस प्रकार के अनुमान