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वस्तु के प्रतिपादन के लिये उपसंहार वाक्य है । उपसंहार के बिना जिस प्रकार हेतु नियत धर्मों का धर्म नहीं सिद्ध हो सकता इस प्रकार पक्ष वचन के बिना साध्य नियत धर्मों के धर्मरूप में नहीं सिद्ध हो सकता । विप्रतिपत्तिरूप विवादवाक्य से पक्ष की प्रतीति होती है, इस कारण पक्ष का प्रयोग यदि न किया जाय तो समर्थन के प्रयोग से हेतु की प्रतीति होती है इसलिये हेतु का प्रयोग भी नहीं करना चाहिये । समर्थन का अर्थ है-हेतु का प्रयोग कर के असिद्धता आदि दोषों का परिहार । जब तक असिद्धत्व, विरुद्धत्व और अनेकान्तिकत्व का निराकरण न हो जाय तब तक हेतु साध्य को नहीं सिद्ध कर सकता । असिद्धता आदि दोषों को 'बिना दूर करे यदि हेतु से साध्य को सिद्धि हो जाय तो हेत्व भासों से भी साध्य की सिद्धि होनी चाहिये । जिस प्रकार हेतु के प्रयोग के बिना हेतु का समर्थन नहीं हो सकता इस प्रकार पक्ष के प्रयोग के बिना हेतु और साध्य की प्रवत्ति 'नहीं हो सकती। विप्रतिपत्ति आदि वाक्यों के द्वारा पक्ष की प्रतीति हो जाती है, अतः पक्ष प्रयोग के बिना यदि हेतु आदिका प्रयोग हो सकता हो, तो असिद्धता आदिके परि. हार से हेतु और साध्य की प्रतीति हो जाती है । इसलिये हेतु आदिका समर्थन भी हेतु के प्रयोग के बिना करना चाहिये । जो लोग अति कुशल नहीं हैं उनके लिये हेतु का और साध्य का प्रयोग यदि आवश्यक हो तो इसी कारण प्रतिज्ञा का प्रयोग भी करना चाहिये । साध्य को सिद्धि के लिये हेतु के प्रयोग के समान पक्ष का प्रयोग भी उचित है। . . . मूलम:-किञ्च, प्रतिज्ञायाः प्रयोगानहत्वे
शास्त्रादायप्पसौन प्रयुज्येत,दृश्यते च प्रयुज्य