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___अर्थः-विवाद से ही पक्ष का ज्ञान हो जाता है, अतः पक्ष का प्रयोग व्यर्थ है । इस प्रकार बौद्ध कहता है।
विवेचना:-एक वादी कहता है बद्धि नित्य है' और दूसरा वादी कहता है 'बुद्धि अनित्य है' इस विवाद से पक्ष को प्रतीति होती है, अतः पक्ष का वचन व्यर्थ है। साध्य अर्थ की सिद्धि के लिये अनुमान का प्रयोग होता है। हेतु के बिना साध्य अर्थ को सिद्धि नहीं होती । यदि केवल पक्ष के वचन से साध्य को सिद्धि हो तो हेतु का बचन व्यर्थ होगा । हेतु के द्वारा साध्य को सिद्धि होती है-अतः उसके साथ पक्ष के प्रयोग को आवश्यकता नहीं है।
मूलम्:-तन्न; यत्किश्चिदचनव्यवहितात सतो व्युत्पन्नमतेः पक्षप्रतीतावप्यन्यान् । प्रत्यवाय. निर्देश्यत्वात् । . .
___अर्थः-यह कथन युक्त नहीं। किसी भी वचन . द्वारा व्यवधान युक्त विवाद से व्युत्पन्न बुद्धिवाले
मनुष्य को यदि पक्ष की प्रतीति हो जाय तो भी अन्य लोगों के लिये पक्ष का प्रयोग अवश्य करना चाहिये ।
विवेचना:-पहले मध्यस्थ विप्रतिपत्ति को कहता है। बुद्धि क्षणिक है अथवा अक्षणिक है यह विप्रतिपत्ति का आकार है इसके अनन्तर मध्यस्थ कहता है पहले आपको बोलना चाहिये और इसके अनन्तर इनको बोलना चाहिए । इस रीति से जब वादो और प्रतिवादी के बोलने की बारा निश्चित हो जाती है तब वादी अपने पक्ष की