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जग और नास्तित्व । शशशुग में नास्तित्व के अभावरूप अस्तित्व का निश्चय नहीं है । अतः नास्तित्व अंश में यह अनुमिति आहार्यरूप नहीं है । परन्तु शशश गरूप अश में शुग विशेष्य है और शशीयत्व विशेषण है। यहां शशीयत्व के अभाव का निश्चय है, अतः बाध का निश्वष है । इस बाध के काल में शशीयत्व का ज्ञान शग में हो जाय-इस प्रकार को इच्छा से वह अनुमिति उत्पन्न हुई है । अतः शशीयत्व. रूप विशेषण अंश में वह आहार्यरूप है।
यद्यपि प्राचीन नैयायिक मानस प्रत्यक्ष को ही आहाये. रूप में स्वीकार करते हैं । तो भी नैयायिकों के कुछ एक देशी अनुमिति को आहार्यरूप में मानते हैं । अतः प्रकृत अनुमिति आहार्यरूप में हो सकती है । आहार्य अनुमिति भी निष्फल नहीं है । जब सर्वज्ञ की सत्ता को सिद्ध करने के लिये इस प्रकार की अनुमिति होती है तब नास्तित्व का निषेध फलरूप में होता है देश और काल में सर्वज्ञ की सत्ता है परन्तु प्रतिवादी समस्त देश और काल में सर्वज्ञ के अभाव को कहता है । यह अभावरूप नास्तित्व आरोपात्मक है। अनुमिति से इस भारोप की निवृत्ति होती है । इसी रीति से शशशुग का समस्त देश और काल में अभाव है । परन्तु प्रतिवादी देश और काल में सत्ता का आरोप करता है। यह अनुमिति देश और काल में सत्ता के अभाव को सिद्ध करती है । शशशग के असत्त्व की सिद्धि आहार्य अनुमिति का
यह अनुमिति ज्ञानात्मक है और उस ज्ञान का प्रामाण्य अथवा अप्रामाण्य निश्चित नहीं, अतः वह विकल्परूप है ।