________________
२७०
उसके प्रकाशक ज्ञान में विशेष्यतावच्छेदक प्रकारक निश्चय कारण है। यहाँ अनुमिति शशीयत्व से विशिष्ट शृंग में नास्तित्व के वैशिष्ट्य को प्रकाशित करती है। इसलिये वह विशिष्ट वैशिष्ट्य की प्रकाशक है । इस ज्ञान में 'शूग शशीय है' इस आकारवाला निश्चय कारण है । यह निश्चय विशेध्यतावच्छेदक प्रकारक है। शशीयत्व यहां विशेष्यतावच्छे. दक है और वह शग में प्रकाररूप से प्रतीत होता है। जब शंग शशीय है अथवा नहीं' इस प्रकार का संदेह होता है अथवा जब 'शग शशीय नहीं इस प्रकार का बाध होता है, तब शंग शशीय है इस प्रकार का निश्चयरूप कारण नहीं रहता । कारण के अभाव में पहले कही रीति के अनुसार विशिष्ट वैशिष्ट्य को प्रकाशक अनुमिति नहीं हो सकती । इसी प्रकार शशीयत्व से विशिष्ट शंगरूप विशेष्य में नास्तित्व को प्रकाररूप से प्रतीति अनुमिति द्वारा नहीं हो सकती।
यह बाध-निश्चय अथवा संदेह है, अत: पूर्वोक्त अनुमिति भ्रमरूप में अथवा प्रमारूप में नहीं हो सकती । जब बाध का निश्चय अथवा संदेह होता है तब प्रमा और भ्रम नहीं हो सकतें। बाध का निश्चय भ्रम और प्रमा को उत्पत्ति में बाधक है । परन्तु आहार्य-प्रारोपरूप अनुमितिभ्रम अथवा संदेह के काल में भी हो सकती है । जब बाध का निश्चय होता है तब जो ज्ञान इच्छा से उत्पन्न होता है वह आहार्य कहा जाता है। बाध के निश्चय से आहार्य ज्ञान का प्रतिबंध नहीं होता। अतः बाधकाल में आहार्य अनुमिति हो सकती है । प्रकृत अनुमिति म शशशंग विशेष्य है और नास्तित्व प्रकार है इस अनुमिति में दो अश ह-शश