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शश की प्रतीति होनी है तब प्रसिद्ध वस्तु में प्रसिद्ध वस्तु का अभाव प्रतीत होता है । 'घटाभाववाला भूतल है'-इस प्रतीति में जिस प्रकार घटाभाव अप्रसिद्ध वस्तु का अभाव नहीं इसी प्रकार शुग का अभाव अप्रसिद्ध वस्तु का अभाव नहीं । जिस प्रकार विशेष्य भूतल प्रसिद्ध है इस प्रकार विशेष्य शश प्रसिद्ध है ।
इन तीन पक्षों में से प्रथम पक्ष के अनुसार अखंडरूप में विकल्पसिद्ध धर्मों के ज्ञान को सिद्धान्ती अयुक्त कहता है । अखड रूप में उसका ज्ञान हो तो अपन वस्तु को प्रतीति होती है इस प्रकार मानना पडेगा। विकल्प से सिद्ध प्रमाण द्वारा सिद्ध नहीं है-अतः वह असत् है उसका ज्ञान असत् का ज्ञान है ।
जैन सिद्धान्त के अनुसार ज्ञान में विद्यमान अर्थ को ही प्रतीति होती है । सिद्धान्त के प्रतिकूल होनेके कारण यह पक्ष स्वीकार योग्य नहीं है।
विशिष्ट रूप में विकल्प सिद्ध धर्मों का ज्ञान होता है इस द्वितीय पक्ष में भी दोष है।
यदि विशिष्ट रूप में विकल्प सिद्ध धर्मी के अभाव का ज्ञान हो तो वह अभाव ज्ञान विशिष्ट-वेशिष्ट्यावगाहो होगा। शाब्द बोध में शशीयत्व से विशिष्ट शग के वैशिष्टय का अभाव प्रतीत होगा। शशीयत्व से विशिष्ट शग है
और शग से विशिष्ट अभाव है इस रीति से अभाव का ज्ञान विशिष्ट के वैशिष्टय का प्रकाशक हो जाता है ।
अनुमिति में यदि विशिष्ट रूप से भान हो तो शशीयत्व से विशिष्ट श ग में अभाव के वैशिष्टय का ज्ञान होगा । इस रीति से विशिष्ट रूप में यह ज्ञान हो तो यह विशिष्ट