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प्रतीत होता है । अर्थात् शशके संबंधी शृंग का अभाव प्रतीत होता है । इस पक्ष में शश का शृंग कोई अखंड वस्तु नहीं है । शृंग एक वस्तु है और शश का संबंधी भी एक वस्तु है शश का संबंधी केश, चर्म आदि प्रसिद्ध है और हरिण आदिका शृंग प्रसिद्ध है । शशशृंग नहीं है साक्य के द्वारा शशशृंग नामक किसी एक वस्तु का अभाव नहीं प्रतीत होता, किन्तु शृंग के साथ शश सबंधी वरतु के अभेद का निषेध प्रतीत होता है । शृंग प्रसिद्ध है और शशसबंधी अर्थ प्रसिद्ध है । इन दोनों नहीं है । इस प्रकार शशसंबंधी शृंग का अभाव प्रतीत होता है । इस रीति से शशशृंग का अभाव प्रसिद्ध वस्तु का नहीं किन्तु प्रसिद्ध वस्तु का हो जाता है ।
अर्थो में अभेद
जब अनुमिति में खंड खंड रूप से शशशृंग की प्रतीति होती है तब शशीयत्व की प्रतीति प्रतियोगिता संबंध से अभाव में होती है । और अभाव शृंग में प्रकार रूप से प्रतीत होता है, शशीयत्व का अभाववाला शृंग है इसप्रकार प्रतीति होती है। यहाँ शृंग विशेष्य है और शशीयत्व का अभाव प्रकार है । शृंग प्रसिद्ध है और शशीयत्व भी प्रसिद्ध है । इस रीति से शशशृंग का अभाव अप्रसिद्ध प्रतियोगी का अभाव नहीं किन्तु प्रसिद्ध प्रतियोगी का अभाव है।
अथवा अन्य रीति से अनुमिति में शशशृंग के अभाव की प्रतीति हो सकती है । शश विशेष्य है और उसमें अभाव विशेषण है और अभाव में शृंग विशेषण है । इस रीति के अनुसार शश में शृंग के अभाव की प्रतीति होती है । शश प्रसिद्ध है और शृंग प्रसिद्ध है । शुंग का अभाव भी प्रसिद्ध है इसलिये जब शुंग के अभाव से विशिष्ट