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अर्थः-यह वस्तु ध्यान देने योग्य है । असत् ख्याति की आपत्ति होती है इसलिये विकल्पमिद्ध धर्मी का ज्ञान अखंडरूप में नहीं होता । शब्द आदिके द्वारा शिविष्टरूप में उमका ज्ञान यदि माना जाय तो जब विशेषण के विषय में संदेह हो अथवा विशेषण के अभाव का निश्चय हो तो वैशिष्टय की प्रतीति नहीं हो सकती. अतः विशेषण आदि अंश में आहार्यागेएस्वरूप विकल्पा मक अनुमिति माननी चाहिये । देश और काल में सत्तारूप अस्तित्व को और समस्त देश काल में सत्ता के अभावरूप नास्तित्व को मिद्ध करने से प्रतिवादी द्वारा कल्पित विपरीत आरोप की निवृत्ति इसका फल है।
विवेचना:-विकल्प से सिद्ध धर्मी में सत्त्व और असत्त्व का साध्यरूप में प्रतिपादन किया है। अतः विकल्पसिद्ध धर्मी के ज्ञान को रोति को ग्रंथकार प्रकट करते हैं। शब्द से अथवा अनुमान से जब विकल्प सिद्ध धर्मों की प्रतीति होती है तब तीन प्रकार हो सकते हैं । अखंड रूप से ज्ञान प्रथम प्रकार है। विशिष्ट रूप से ज्ञान द्वितीय प्रकार है । खडरूप से ज्ञान तृतीय प्रकार है। प्रथम पक्ष के अनुसार 'शशशंग नहीं है' इस वाक्य के द्वारा जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसमें अखंड शशशग का ज्ञान होता है । 'घट नहीं है। इस वाक्य के बाग जिस प्रकार घटाभाव का ज्ञान होता है और उसमें घर प्रतियोगीरूप में और अभाव विशेष्यरूर