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कहा भी है-विकल्पसिद्ध धर्मी के होने पर सत्व और असत्व ही साध्य होते हैं।
वेिचना:-जो धर्मो प्रमाण सिद्ध है अथवा जो धर्मी प्रमाण और विकल्प दोनों से सिद्ध है उनमें इच्छा के अनु. सार वादो किमी भी धर्म को साध्यरूप में कर सकता है परन्तु जब धर्मी विकल्प सिद्ध होता है तब सत्व और अमत्त्व में से कोई एक ही साध्य हो सकता है । जब तक धर्मी की सत्ता प्रतिष्ठिन नहीं हुई तब तक अन्य धर्म की सिद्धि नहीं हो सकती।
मूलमा-पत्र बोरः सत्तामात्रस्यान भोप्सिसातादिशिष्टमत्तासापने पानन्वाद्विकल्पसिई धर्मिणि न सत्ता माभ्येत्याह;
अर्थ:-यहाँ बौद्ध कहता है केवल सत्ता की सिद्धि इष्ट नहीं है । यदि विशिष्ट सत्ता की सिद्धि की जाय तो अन्वय न होनेसे विकल्प सिद्ध धर्मी में सत्ता साध्य नहीं हो सकती।
विवेचना:-जब सर्वज्ञ को मानने वाले जैन अथवा नैयायिक आदि सर्वज्ञ को सिद्ध करने के लिये अनुमान का प्रयोग करते हैं तब सर्वज्ञ धर्मी अर्थात् पक्ष होता है और सत्ता साध्य होती है । बौद्ध विकल्पसिद्ध धर्मी को स्वीकार नहीं करता। उसके अनुसार यदि धर्मो विकल्प सिद्ध हो तो सत्ता साध्य नहीं हो सकती । बौद्ध कहता है सबज से विशिष्ट ससा की सिद्धि करनी हो, तो व्याप्ति का अभाव