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है। मीमांसक आदि स पुरुष को स्वीकार नहीं करते। उनके भनुमार इस प्रकार का कोई पुरुष नहीं है जिसमें बाधक प्रमाणों का अभावरूप हेतु और सर्वज्ञ विशिष्ट सत्ता रूप साध्य की स्थिति हो । व्याप्ति के बिना साध्य की सिद्धि में हेत असमर्थ होता है । यदि सर्वज्ञवादी केवल सत्ता को साध्य रूप में करे तो इष्ट अर्थ की सिद्धि नहीं होती। नो लोग सर्वज को नहीं स्वीकार करते, वे सामान्य रूप से किसी भी वस्तु की सत्ता को स्वीकार करते हैं । इस प्रकार का कोई प्रतिवादी नहीं है जो विशेष स्वभाव से रहित वस्तु को न मानता हो। - मलम -तदसत् इत्थं सति प्रकृतानुमानस्थापि भङ्गप्रसङ्गात्, वहिनमात्रस्यानभीप्सित. स्वादिशिष्टवनेश्वानन्धयादिति ।
अर्थ:-वह कथन युक्त नहीं। इस रीति से तो प्रकृत अनुमान का भी भंग हो जायगा । सामान्य वहि की सिद्धि इष्ट नहीं है और विशिष्ट वह्नि की च्याप्ति नहीं है।
विवेचना--समस्त लोगों में प्रसिद्ध अनुमान को यहाँ पर प्रकृत पद से कहा गया है! प्रकरण का विषय होनेसे यहाँ प्रकृत पर का प्रयोग भहीं है । पर्वत वह्निमान है, इस मनुमान का प्रकरण यहां नहीं है।
धूमसे जब पति को अनुमिति की जाती है तब भी इस रीति से आक्षेप हो सकता है। अनुमान का प्रयोक्ता सामान्य बलि की सिद्धि के लिये यत्न नहीं करता। वह