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से सिद्ध है। वर्तमान शब्द प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है ।
प्रतीत होता है । धर्मी प्रमाण और
भूत
और भावी शब्द विकल्प से समस्त शब्द धर्मी है अतः यहाँ विकल्प दोनों से सिद्ध है ।
विवेचना :- शब्द परिणामी है इत्यादि बनुबान का प्रयोग जैन करता है उसमें समस्त शब्द पक्ष है। रूप से शब्द यहां धर्मी है। इसलिये वर्तमान भून मोर भाबी शब्द धर्मो रूप में है, उनमें वर्तमान शब्द बाबी प्रतिवादी दोनों की अपेक्षा से प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा सिद्ध है। भूत और भावी शब्द प्रत्यक्ष के विषय नहीं. इसलिये उनका ज्ञान प्रमाणभूत अथवा अप्रमाणभूत नहीं है। जिसका प्रामाण्य अथवा अप्रामाण्य निश्चित नहीं है इस प्रकार के ज्ञान का विषय होने से मृत और मावी शब्द विकल्प सिद्ध धर्मो के प में हैं ।
मुलम्ः - प्रमाणो भग सिद्धयोर्धर्मिणोः साध्ये कामचारः । विकल्पसिखे तु धर्मिणि सत्तासन्तयोरेव साध्यत्वमिति नियमः । तदुक्तम् 'विकरूपसिद्धं तस्मिन् सतेतरे साध्ये' (परो० ३०२३) इनि ।
अर्थ:- प्रमाण सिद्ध और उभय सिद्ध धर्मियों में इच्छा के अनुसार कोई भी धर्म साध्य हो सकता हैं, परन्तु जब धर्मी विकल्प सिद्ध होता है तब सत्त्व और असत्त्व ही साध्य होते हैं । इस प्रकार का नियम है ।