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विवेचना:-मीमांतक आदि प्रतिवादी सर्वज को स्वीकार नहीं करते, उनके सामने बैन आदि सर्व है इस रीति से अनुमान का प्रयोग करते हैं। चैन की अपेक्षा से सर्वज्ञ आगम प्रमाण द्वारा सिद्ध है परन्तु सर्वज्ञ के प्रतिपादक आगम को मीमांसक आदि प्रमाणरूप से नहीं स्वीकार करते । अतः सर्बशरूप धर्मो की सिद्धि यहाँ विकल्प से होती है।
खरविषाण के असत्त्व को सिद्ध करने के लिये जब भनुमान होता है तब वादो भौर प्रतिवादी दोनों की अपेक्षा से प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों द्वारा खरविषाण की सिद्धि नहीं है। परंतुखरविषाण का ज्ञान होता है यह खरविषाण प्रमाण अथवा अप्रमाणरूप से जो निश्चित नहीं है, इस प्रकार के ज्ञान का विषय है। अतः खरविषाण विकल्प से सिद्ध है । असत्त्व के अनुमान मे जब असत्व की सिद्धि होगी तब खरविषाण का ज्ञान अप्रमाणरूप सिद्ध होगा । परन्तु असत्व की सिद्धि जब तक नहीं होती तब तक खर विषाण का ज्ञान अप्रमाणरूप में निश्चित नहीं है। उस काल में खरविषाणरूप धर्मी विकल्प से प्रसिद्ध है।
मूलम्:-उभयसिद्धो धर्मी यथा शब्दः परिणामी कृतकवादित्यत्र शब्दः, स हि वर्तमान (न:) प्रत्यक्षगम्यः, भूतो भविष्यंश्च विकल्पगम्यः,स सर्वोऽपि धर्मीति प्रमाणविकल्पसिडो धर्मी।
अर्थः-शब्द परिणामी है, कृतक होने से । इस प्रयोग में शब्दरूप धर्मी प्रमाण और विकल्प दोनों