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साध्य हो सकती है। परि आप विकल्प को धर्म की सिद्धि में असमर्ष कहते हैं तो आपके अनुमान ही आपका विरोष करेंगे। सांख्य आदि संसार के मूल कारण को प्रकृति कहते हैं । सत्त्व रज और तम-इन तीन गुणों की सम अवस्था को वे प्रकृति कहते हैं । आप प्रकृति का निषेध करते हैं। आकाश के पुष्प के समान भार प्रकृति को संबंया असत् कहते हैं। प्रकृति की प्रतीति प्रमाण से नहीं होती, अतः प्रकृति असत है इस प्रकार भाप भनुमान का प्रयोग करते हैं।
यदि विकल्प के द्वारा धर्मी को सिद्धि न हो तो इस अनुमान में प्रकृति की धर्मारूप में मिदि संभव नहीं है। विकल्प से प्रकृति को धर्मोरूप में मानकर आप उसके मतत्व को सिद्ध करने के लिये अनुमान का प्रयोग कर सकते हैं। विकल्प सिद्ध धर्मी में जिस प्रकार असत्व साध्य हो सकता है इस प्रकार सत्व भी साध्य हो सकता है । मसरव की सिद्धि के लिये धर्मी यति विकल्प द्वारा सिह हो सकता है तो सत्य की सिद्धि के लिये भी विकल्प के द्वारा सिद्ध हो सकता है।
मूलम्:-अथ तत्र सत्तायां साध्यतायां तरतुः-भावधर्मः, भावाभावधर्मः अभावधर्मा वा स्यात् ?
अर्थः-शंका करता है, विकल्प सिद्ध धर्मी में जब सत्ता साध्य होती है तब उसकी सिद्धि के लिये जो हेतु है वह भाव का धर्म है, भावाभाव का धर्म है अथवा अभाव का धर्म है ?