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कत्वेनाइम . साध्यं तु गम्यम्वेन, धर्मी पुनः साध्यधर्माधारत्वेन, आधारविशेषनिष्ठतया साध्याडे (साध्यसिद्ध) रनुमानप्रयोजनत्वात् ।
अर्थः-इस रीति से स्वार्थानुमान के तीन अंग हैं। धर्मी, साध्य और साधन, उनमें साधक होने के कारण साधन अंग है । साधन से सिद्ध होने कारण साध्य अंग है । साध्य-धर्म का आधार होने के कारण धर्मी अंग है। किसी विशेष आधार में साध्य की सिद्धि अनुमान का प्रयोजन है। अतः ये तीन अंगो।
मूलम-अपवो पक्षो हेतुरित्यजदयं स्वार्थानमाने, सध्यधर्मविशिष्ठस्य धर्मिणः पक्षत्वात् इतिषमधर्मिभेदाभेदविवक्षया पक्षश्यं द्रष्टव्यम्। ___ अर्थः-अथवा स्वार्थानुमान में पक्ष और हेतु ये दो अंग हैं। साध्य धर्म से विशिष्ट धर्मी पक्ष है । अतः दो अंग हो सकते हैं । धर्म और धर्मी के मेद और अभेद की विवक्षा से ये दोनों पक्ष हैं, इस प्रकार समझना चाहिये।
विवेचना:-साध्य धर्म अलग अंग है, और धर्मों अलग अंग है इस रीति से धर्म और धर्मो के मेद की विवक्षा से प्रथम पक्ष में तीन अंग हैं जब धर्म और धर्मों में अमेरको