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के अनुसार जो प्रमाण से बाधित नहीं है वही साध्य होता है। - मूलम्:-अभीप्सितमिति तु वायपेक्षयैव, वक्तुरेव स्वाभिप्रेतार्थ प्रतिपादनायेहासम्म. पात् । . अर्थः-साध्य के लक्षण में अभप्सित विशेषण विशेषतः वादी की अपेक्षा से है । वादी जिस अथे को स्वीकार करता है उसके प्रतिपादन के लिये वादी की ही इच्छा होती है।
मूलम:-तच परार्थाश्चक्षुरादय इत्यादी पाराय॑मानामिधानेऽप्यात्मार्थत्वमेव सायं( मेव साध्य) सिध्यति । अन्यथा संहतपरार्थत्वेन पौद्ध. अक्षगरीनामभ्युपगमा [त साधनवैफल्या ] दित्यनन्वयादिदोषदुष्टमेतरसायसाधन मिति पदन्ति । ___ अर्थः-इसलिये "चक्ष आदि इन्द्रिय परके लिये हैं" इत्यादि प्रयोग में यद्यपि केवल परार्थता का कथन है तो भी आत्मार्थता ही साध्य है। यदि इस प्रकार न माना जाय तो बौद्ध लोग चक्ष आदिको संहत परके लिये स्वीकार करते हैं इसलिये हेतु निष्फल हो