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अर्थ:-जिसमें संदेह है इसी प्रकार के साध्य को सिद्ध करना कथा में उचित है-इस प्रकार कोई कहता
_ विवेचना:-सिद्धान्त के अनुसार जिस वस्तु में संदेह भ्रम अथवा अनध्यवसाय है वह साध्य हो सकता है। इस आक्षेप का कर्ता कहता है वादी और प्रतिवादी जब कथा अर्थात् वाद करते हैं तब यदि संदेह हो तो परार्थ अनुमान के द्वारा सदेह दूर हो सकता है, अतः साध्य संदेह का विषय हो होना चाहिये।
मूलम्:-तन्नः विपर्यस्ताव्युत्पन्नगोरपि परपक्षदिक्षादिना कथायामुपसर्पणसम्भवेन संश. यनिरासार्थमिव विपर्ययानध्यवसायनिरासार्थ मपि प्रयोगसम्भवात् , पित्रादेधिपर्यस्ताव्युत्प. नपुत्रादिशिक्षाप्रदानदर्शनाच । न चंदेवं जिगी. घुकथायामनुमानप्रयोग एव न स्यात् तस्य साभिमानत्वेन विपर्यस्नत्वात् ।
अर्थः-यह कथन युक्त नहीं, भ्रान्त और अज्ञानी लोग भी अन्य पक्ष को जानने की इच्छा से वाद में जा सकते हैं, इसलिये जिस प्रकार संदेह के निराकरण के लिये इसी प्रकार भ्रान्ति और अज्ञान को दूर करने के लिये भी अनुमान का प्रयोग हो सकता है । भ्रान्त