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पक्ष में सत्ता के बिना यदि हेतु हो, तो "शम अनित्य है। चक्षु से प्रत्यक्ष होनेके कारण" इस प्रयोग में चाक्षुषत्व अर्थात् चक्षु से उत्पन्न प्रत्यक्षजान का विषयत्व भी हेतु हो जायगा। धूम हेतु जब वह्नि को सिद्ध करता है, तब उसमें पक्ष सत्त्व है। पर्वत पक्ष है. उसमें धूम विद्यमान है । शम को अनित्य सिद्ध करने के लिये जब चाक्षुषत्व हेतु का प्रयोग होता है तब उसमें पक्ष सत्त्व नहीं है । शब्द पक्ष है. उसका प्रत्यक्ष चक्षु द्वारा नहीं होता । अतः चाक्षुषत्व हेतु शब्दरूप पक्ष में नहीं है । इसलिये वह स्वरूपासिद्ध हो जाता है । स्वरूपासिद्धता की निवृत्ति पक्षसत्व के बिना नहीं हो सकती। इस प्रयोग में जो चाक्षुषत्व हेतु है वह सपक्ष घटादि में है और विपक्ष आकाश आदि में नहीं है । सपक्ष सत्व और विपक्ष में असत्त्व ये दो धर्म हैं। परन्तु पक्षसत्त्व. रूप धर्म नहीं है। हेतु के लिये पक्षसत्त्व यदि आवश्यक न हो तो शब्द में चाक्षुषत्व हेतु के द्वारा अनित्यता का अनुमान होना चाहिये। - सपक्षसत्त्व हेतु के लिये यदि आवश्यक न हो, तो "शब्द नित्य है: उत्पत्तिमान हानेसे;" इस प्रयोग में उत्पत्ति मत्त्वरूप म हेतु हो जायगा । यहाँ पर नित्यत्व साध्य है, इसलिये आकाश आदि सपक्ष हैं। उनमें उत्पत्तिमत्त्वरूप हेतु नहीं है। उत्पत्ति से नित्यता की सिद्धि नहीं होती । जिन पदार्थों की उत्पत्ति होती है, वे नित्य नहीं, अनित्य होते हैं। घट आदिको उत्पत्ति है और वे अनित्य हैं। नित्यता को सिद्धि के लिये उत्पत्तिमत्त्वरूप हेतु विरुद्ध है। विरुद्धता को निवृत्ति के लिये सपक्ष में सत्त्व आवश्यक है । धूम हेतु में सपक्षसत्त्व है । वहां महानस आदि सपक्ष हैं। उनमें धूम विद्यमान है; इसलिये धूम हेतु निर्दोष है।